Abstract: लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराए जाने के मसले पर लम्बे समय से बहस चल रही है भारतीय शासन व्यवस्था में 1952-1967 तक के काल में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही सम्पन्न हुए। इसके बाद सरकारों का अस्थिर काल शुरू हुआ जिसका परिणाम चुनावों के समय में अनियमितता का दौर प्रारम्भ हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस विचार का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाया। एक राष्ट्र, एक चुनाव का कोई निश्चित अर्थ नहीं माना गया अर्थात कोई पैमाना निर्धारित नहीं किया गया है। सरकार की मंशा के अनुसार एक राष्ट्र एक चुनाव में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को ही शामिल किया गया है जबकि भारतीय संविधान में तीन प्रकार के चुनावों में जनता प्रत्यक्ष रूप से सहभागिता निभाती है जिसमें विद्वानों द्वारा स्थानीय स्वशासन के चुनाव भी एक साथ करवाने का सुझाव रखा है क्योंकि तीनों चुनावों की अवधि पाँच वर्ष ही निर्धारित की गई है। प्रस्तुत शोध पत्र में एक साथ चुनाव के पक्ष एवं विपक्ष में तर्कों का विश्लेषण करेंगें जिसमें कुछ विद्वान इसके विपरीत संघवाद का ढाँचा नष्ट होने की बात करते है जबकि कुछ एक साथ चुनाव का समर्थन करते है जिसके लिए क्या संविधान में संशोधन अपेक्षित है उनका भी विश्लेषण करके सुझाव प्रेषित किए गए है।
राजेन्द्र प्रसाद कुमावत. भारतीय संघवाद बनाम 'एक राष्ट्र एक चुनाव'. Int J Political Sci Governance 2022;4(2):114-117. DOI: 10.33545/26646021.2022.v4.i2b.180