आरक्षण नीतिः समस्या एव संभावनाएं (हरियाणा प्रदेश का विश्लेषणात्मक अध्ययन)
Author(s): अजीत सिंह
Abstract: “संसद द्वारा पारित संविधान (103 वां संशोधन) अधिनियम 2019 राज्य (यानी, केन्द्र और राज्य सरकार दोनों) को समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ई.डब्ल्यू.) को आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाता है। संविधान के नए सम्मिलित अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार की नौकरियों में नियुक्ति और राज्य सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए समाज के ई.डब्ल्यू.एस. को आरक्षण प्रदान करना है या नहीं, यह राज्य सरकार द्वारा तय किया जाना है।
1992 के आदेश के बाद से, कई राज्यों ने हरियाणा, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र सहित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने वाले कानून पारित किए हैं। कई राज्यों ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण लाने के लिए कानून में बदलाव किए। एक उल्लेखनीय उदाहरण तमिलनाडु में है। 1993 के इसके अधिनियम में राज्य सरकार में कॉलेजों और नौकरियों में 69 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। हालाँकि, संविधान में संशोधन करके नए कानून को बनाना इंद्रासाहनी फैसले के एकदम विपरीत है। प्रस्तुत पत्र हरियाणा में आरक्षण नीतियों से संबंधित मुद्दों विशेष रूप से जाट समुदाय आरक्षण संबंधी समस्याओं को प्रस्तुत करता है, ये समस्याएं राज्य में लंबे समय से स्थिर हैं। निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 75 प्रतिशत कोटा प्रदान करने की मांग वाले हालिया बिल पर भी पेपर केन्द्रित है।
DOI: 10.33545/26646021.2022.v4.i1c.158Pages: 192-196 | Views: 378 | Downloads: 9Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
अजीत सिंह.
आरक्षण नीतिः समस्या एव संभावनाएं (हरियाणा प्रदेश का विश्लेषणात्मक अध्ययन). Int J Political Sci Governance 2022;4(1):192-196. DOI:
10.33545/26646021.2022.v4.i1c.158